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ओस की बून्देंहुई इन्द्रधनुष
ले सूर्य रश्मि।
दिल बेचैन
मेरा हिन्द ख़ो गया
बेघर हूँ मैं ।
ख्वाब है यही
कोई भगत सिंहफिर आएगा ।
धूप की अग्नि
जलाए नंगे शैलकब तलक ?
निर्झर स्रोत
बहते थे जो कल
हैं अब प्यासे।
ओस की बून्दें
कहे जीवन तो है
क्षणभंगुर
कोमल स्पर्श
छू जाये जो मन को
बिटिया है वो
पिता आंगन
गूंजे चूडी पाजेब
बिटिया प्यारी
जीवन सार
बेटी नही है भार
वो है श्रृंगार