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Delhi, देहरादून, उत्तराखंड, India
एक दिशा, एक एहसास, नयी शुरुआत और एक कोशिश...यहीं से शुरू है यह छोटा सा प्रयास...अपनी अनुभूतियों के निर्झर स्रोत को एक निश्चल और अंतहीन बहाव देने का...

Monday, November 15, 2010

व्यथा अपार लिये खडा कमल

व्यथा अपार
लिये खडा कमल
फिर भी खिले

सौम्य कमल

सिखा देता है
जीने के सच्चे सूत्र
सौम्य कमल

फूल कमल

फूल कमल
शोभा बन जाता है
देवी देवों की

खिलें कमल

गुलाबी हुए
सरोवर औ ताल
खिलें कमल

निर्भीक सरोज...

निर्भीक खडा
दलदल के बीच
पद्म सरोज

कोमल सा कमल

आसन बना
कोमल सा कमल
देवी चरण

लक्ष्मी और ब्रह्मा में मिले कमल...

रंग रूप में
लक्ष्मी और ब्रह्मा में
मिले कमल

पद्म सरोज...

पद्म सरोज
दलदल में पले
फिर भी सुन्दर

तिरे जलज...

हरे बिछौने
बैठ गुलाबी बन,
तिरे जलज

Friday, October 1, 2010

ज्ञान गगरी...

ज्ञान गगरी
छलके तो ही अच्छा
मिटाये तम ।

Wednesday, September 15, 2010

दिल्ली बेहाल

यमुना चली
आक्रोश रौद्र रूप
दिल्ली बेहाल

Thursday, September 9, 2010

चंचल मेघ...

मेघों की मर्जी
जहाँ चाहा बरसे
चंचल बन।

Wednesday, September 8, 2010

गरीब भूखा...

अनाज पूरा
ढेर पर ढेर हैं
गरीब भूखा।

Tuesday, September 7, 2010

भीगा घूंघट..

चान्द तारों का
घूंघट बना मेघ
भीगा भीगा सा।

Tuesday, August 17, 2010

शब्द संचारी...

प्रेम व ज्ञान
समाज सुविचारी
शब्द संचारी।

Monday, August 16, 2010

इन्द्रधनुष...

मेघ चादर
हटा रहा रंगीला
इन्द्रधनुष।

Friday, August 13, 2010

वर्षा बहार...

झूमें सुमन
भीगी सजी बगिया
वर्षा बहार ।

नट्खट सावन...

सावन गिरे
खेले वसुधा पर
नटखट सा ।

सावन...

बून्दें बरसी
रिमझिम सी गाती
भीगे पवन ।

अमलतास...

निर्झर झरें
फूल अमलतास
पीले बिछौने ।

Sunday, August 8, 2010

तितली...

तितली प्यारी
इठलाती झूमती
पी मकरन्द।

Tuesday, February 16, 2010

सुर्ख धरती

सुर्ख धरती
पलाश या रुधिर
किसे है पता ।

उन्मुक्त भौरें

उन्मुक्त भौरें
सुरभित तरंग
झूमें सुमन ।

परी तितली

परी तितली
फूल फूल ले जाये
प्रेम संगीत ।

गूंजो तो भौंरों

सुमन कहें
पराग भरे हम
गूंजो तो भौंरों ।

पतंग चली

पतंग चली
आकाश से देखने
बसंती धरा।

झूमे अमिया

झूमे अमिया
समीर छेडे तान
गाये कोयल।

पीली चुनरी

सरसों झूमी
वसुधा ने ओढ ली
पीली चुनरी।

रंगे पलाश

रंगे पलाश
सरसों हुई पीली
इन्द्रधनुष।

Tuesday, February 9, 2010

बसंत आया

गूंजे हैं भौंरे
पुष्प हैं शर्माए से
बसंत आया.

Thursday, January 14, 2010

गुलाबी ठंड

गुलाबी ठंड
सिकुडते से तन
मन मलंग।

बर्फीली चोटी

बर्फीली चोटी
ले सूरज की गर्मी
नदिया चली।

Tuesday, January 5, 2010

दुनिया है सरल


मेरी आंखों में
दुनिया है सरल
देखो तो ज़रा.

प्यार है भाषा...



किसे चाहिये
भाषाओं का बन्धन
प्यार है भाषा

ओ सिंघापुरा...(सिंगापुर)



ओ सिंघापुरा
सुन्दर शिष्ट तुम
छाये दिलों में