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व्यथा अपार
लिये खडा कमल
फिर भी खिले
सिखा देता है
जीने के सच्चे सूत्र
सौम्य कमल
फूल कमल
शोभा बन जाता है
देवी देवों की
गुलाबी हुए
सरोवर औ ताल
खिलें कमल
निर्भीक खडा
दलदल के बीच
पद्म सरोज
आसन बना
कोमल सा कमल
देवी चरण
रंग रूप में
लक्ष्मी और ब्रह्मा में
मिले कमल
पद्म सरोज
दलदल में पले
फिर भी सुन्दर
हरे बिछौने
बैठ गुलाबी बन,
तिरे जलज
ज्ञान गगरी
छलके तो ही अच्छा
मिटाये तम ।
यमुना चली
आक्रोश रौद्र रूप
दिल्ली बेहाल
मेघों की मर्जी
जहाँ चाहा बरसे
चंचल बन।
अनाज पूरा
ढेर पर ढेर हैं
गरीब भूखा।
चान्द तारों का
घूंघट बना मेघ
भीगा भीगा सा।
प्रेम व ज्ञान
समाज सुविचारी
शब्द संचारी।
मेघ चादर
हटा रहा रंगीला
इन्द्रधनुष।
झूमें सुमन
भीगी सजी बगिया
वर्षा बहार ।
सावन गिरे
खेले वसुधा पर
नटखट सा ।
बून्दें बरसी
रिमझिम सी गाती
भीगे पवन ।
निर्झर झरें
फूल अमलतास
पीले बिछौने ।
तितली प्यारी
इठलाती झूमती
पी मकरन्द।
सुर्ख धरती
पलाश या रुधिर
किसे है पता ।
उन्मुक्त भौरें
सुरभित तरंग
झूमें सुमन ।
परी तितली
फूल फूल ले जाये
प्रेम संगीत ।
सुमन कहें
पराग भरे हम
गूंजो तो भौंरों ।
पतंग चली
आकाश से देखने
बसंती धरा।
झूमे अमिया
समीर छेडे तान
गाये कोयल।
सरसों झूमी
वसुधा ने ओढ ली
पीली चुनरी।
रंगे पलाश सरसों हुई पीली
इन्द्रधनुष।
गूंजे हैं भौंरे पुष्प हैं शर्माए से
बसंत आया.
गुलाबी ठंड
सिकुडते से तन
मन मलंग।
बर्फीली चोटी
ले सूरज की गर्मी
नदिया चली।
मेरी आंखों में
दुनिया है सरल
देखो तो ज़रा.
किसे चाहिये
भाषाओं का बन्धन
प्यार है भाषा
ओ सिंघापुरा
सुन्दर शिष्ट तुम
छाये दिलों में