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हाईकु अनुभूति
वेब पर पूर्ण रूप से हिन्दी हाइकु को समर्पित पहला चिट्ठा (जहाँ एक हाइकु प्रतिदिन लिखा जाता है)
About Me
अरविन्द
Delhi, देहरादून, उत्तराखंड, India
एक दिशा, एक एहसास, नयी शुरुआत और एक कोशिश...यहीं से शुरू है यह छोटा सा प्रयास...अपनी अनुभूतियों के निर्झर स्रोत को एक निश्चल और अंतहीन बहाव देने का...
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Tuesday, February 16, 2010
सुर्ख धरती
सुर्ख धरती
पलाश या रुधिर
किसे है पता ।
उन्मुक्त भौरें
उन्मुक्त भौरें
सुरभित तरंग
झूमें सुमन ।
परी तितली
परी तितली
फूल फूल ले जाये
प्रेम संगीत ।
गूंजो तो भौंरों
सुमन कहें
पराग भरे हम
गूंजो तो भौंरों ।
पतंग चली
पतंग चली
आकाश से देखने
बसंती धरा।
झूमे अमिया
झूमे अमिया
समीर छेडे तान
गाये कोयल।
पीली चुनरी
सरसों झूमी
वसुधा ने ओढ ली
पीली चुनरी।
रंगे पलाश
रंगे पलाश
सरसों हुई पीली
इन्द्रधनुष।
Tuesday, February 9, 2010
बसंत आया
गूंजे हैं भौंरे
पुष्प हैं शर्माए से
बसंत आया.
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